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या वो॑ भेष॒जा म॑रुतः॒ शुची॑नि॒ या शंत॑मा वृषणो॒ या म॑यो॒भु। यानि॒ मनु॒रवृ॑णीता पि॒ता न॒स्ता शं च॒ योश्च॑ रु॒द्रस्य॑ वश्मि॥

English Transliteration

yā vo bheṣajā marutaḥ śucīni yā śaṁtamā vṛṣaṇo yā mayobhu | yāni manur avṛṇītā pitā nas tā śaṁ ca yoś ca rudrasya vaśmi ||

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Pad Path

या। वः॒। भे॒ष॒जा। म॒रु॒तः॒। शुची॑नि। या। शम्ऽत॑मा। वृ॒ष॒णः॒। या। म॒यः॒ऽभु। यानि॑। मनुः॑। अवृ॑णीत। पि॒ता। नः॒। ता। शम्। च॒। योः। च॒। रु॒द्रस्य॑। व॒श्मि॒॥

Rigveda » Mandal:2» Sukta:33» Mantra:13 | Ashtak:2» Adhyay:7» Varga:18» Mantra:3 | Mandal:2» Anuvak:4» Mantra:13


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

फिर वैद्यक विषयको अगले मन्त्र में कहा है।

Word-Meaning: - हे (वृषणः) वृष्टि करानेवाले विद्वानों ! जैसे (मरुतः) मनुष्यों को और (या) जिन (शुचीनि) शुद्ध वा (या) जिन (शन्तमा) अतीव सुख करने वा (या) जिन (मयोभु) सुख की भावना देने वा (यानि) जिन रोग निवारनेवाली (भेषजा) औषधों को (वः) तुम्हारे लिये (मनुः) वैद्यविद्या जाननेवाला (पिता) पिता (अवृणीत) स्वीकार करता है वह तुम्हारे (नश्च) और हमारे लिये (योः) त्याग करने (रुद्रस्य) और रुलानेवाले रोग की निवृत्ति के लिये (शं,च) और कल्याण की भावना के लिये होती वैसी मैं (वश्मि) कामना करूँ ॥१३॥
Connotation: - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि पिता और पितामहों तथा अध्यापक वा अन्य विद्वानों से प्रतिरोग के निवारण के अर्थ ओषधियों को जानकर अपने और दूसरों के रोगों को निवारण करके सबके लिये सुख की आकांक्षा करें ॥१३॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

अथ पुनर्वैद्यकविषयमाह।

Anvay:

हे वृषणो मरुतो यथा या शुचीनि या शन्तमा या मयोभु यानि रोगनिवारकाणि भेषजा वो मनुः पिता अवृणीत ता वो नश्च योश्च रुद्रस्य निवारणाय शञ्च भावनाय तथाऽहं वश्मि ॥१३॥

Word-Meaning: - (या) यानि (वः) युष्मभ्यम् (भेषजा) औषधानि (मरुतः) मनुष्यान् (शुचीनि) पवित्राणि (या) यानि (शन्तमा) अतिशयेन सुखकराणि (वृषणः) वर्षयितारः (या) यानि (मयोभु) सुखं भावुकानि (यानि) (मनुः) वैद्यकविद्यावित् (अवृणीत) स्वीकरोति। अत्राऽन्येषामपीति दीर्घः (पिता) जनकः (नः) अस्मभ्यम् (ता) तानि (शम्) सुखम् (च) बलम् (योः) त्यक्तव्यस्य (च) उत्पद्यमानस्य (रुद्रस्य) रोदयितू रोगस्य (वश्मि) कामये ॥१३॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः पितृपितामहेभ्योऽध्यापकेभ्योऽन्येभ्यो विद्वद्भ्यश्च प्रतिरोगस्य निवारणायौषधीर्विज्ञाय स्वेषां परेषां च रोगान्निवार्य्य सर्वार्थसुखं कामनीयम् ॥१३॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. पिता व पितामह अध्यापक आणि इतर विद्वानांकडून रोग निवारण करण्याचे औषध जाणून माणसांनी आपले व दुसऱ्यांचे रोगनिवारण करून सर्वांसाठी सुखाची इच्छा करावी. ॥ १३ ॥